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गीतों का मौसम / संजीव 'शशि'

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मचल उठी है फिर अधरों पर,
प्यार भरी सरगम।
गीत कुँवर लेकर आये हैं,
गीतों का मौसम।।

फिर होंगे सिंदूरी सपने,
फिर तन-मन बहकेंगे।
लहरायेगी लाल चुनरिया,
फिर कंगन खनकेंगे।
गूँज उठेगी फिर कानों में,
पायल की छमछम।

आँसू का अनुवाद लिखा है,
पीड़ा की परिभाषा।
गीत-गीत में मुखरित होती,
जीने की अभिलाषा।
तपती धरती पर ज्यों बरसे,
सावन की रिमझिम।

ये नन्हें से दीपक कल को,
सूरज कहलाएँगे।
गीतों की खुशबू से जीवन,
बगिया महकाएँगे।
करे आज का स्वागत बीता,
कल फिर हो संगम।