भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गाय बेच हम आये / संजीव 'शशि'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:49, 7 जून 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजीव 'शशि' |अनुवादक= |संग्रह=राज द...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गौमाता कह-कह कर हमने,
चरणों शीश नवाये।
फिर क्यों गाय बेच हम आये ?

सागर के मंथन से निकलीं वह,
कामधेनु कहलायीं।
जन-जन की वह पूज्या होकर,
ऋषियों के मन भायीं।
जिसके अंग-अंग में आकर,
अगनित देव समाये।

यशुदा नंदन किशन कन्हैया,
माखन के मतवाले।
अगनित गैयाँ नंद बबा की,
वह उनके रखवाले।
गौसेवा करके मनमोहन,
हैं गोपाल कहाये।

दूध, दही, माखन देकर भी,
हम से क्या है पाया।
वृद्ध हुईं जब गौमाता तब,
हमने है बिसराया।
चिल्लाये फिर गली-गली हम,
गौहत्या रुक जाये।