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जीवन संध्या / संजीव 'शशि'
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घर सूना है, आँगन सूना,
सूना घर का कोना-कोना।
छोड़ गये अपने तो क्या गम,
मेरी खातिर प्रिय तुम हो ना।।
हाथ थाम कर जीवन पथ पर,
हम-तुम दोनों साथ चले थे।
जब अँधियारे आये दीपक,
बाती बनकर साथ जले थे।
शेष बचा जीवन भी हमको,
अपने काँधों पर है ढोना।
अपने आँगन कुछ पंछी थे,
उड़ना ही था उन्हें एक दिन।
जी सकता हूँ सबके बिन मैं,
पल भर जी न सकूँगा तुम बिन।
यदि अपने होते तो रुकते,
चले गये तो क्यों कर रोना।
बैठो कुछ पल पास हमारे,
आओ अपने मन की कह लें।
याद करें बीते दिन दोनों,
आओ प्रेम नदी में बह लें।
जीवन संध्या की बेला में,
नयनों को अब नहीं भिगोना।