आज खु़द में हूँ कहाँ मैं
ले गया है मन कोई
जिन्दगी अब हो गयी है
लोक गीतों सी सरस
फूल के मानिंद होंगे
अब हमारे दिन-बरस
थक चुके मेरे नयन से
ले गया सावन कोई
नूर भी अब नूर कहकर
नित बुलाती है हमें
थपकियाँ देकर हवाएँ
अब झुलाती हैं हमें
आज दुख का खोल तन से
ले गया अचकन कोई