भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीवन की रीत / संजीव 'शशि'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:45, 7 जून 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजीव 'शशि' |अनुवादक= |संग्रह=राज द...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कभी है हार, कभी है जीत।
यही तो है जीवन की रीत॥

ढूँढते रहे सदा ही हम,
कहाँ हैं सुख की बरसातें।
मिला सुख साथ लिये अपने,
दुखों की अगनित सौगातें।
करें आओ दुख से भी प्रीत।

कभी नयनों में हैं आँसू,
कभी अधरों पर है मुस्कान।
हमें कब कैसे दे पल-छिन,
समय तो है सबसे बलवान।
समय का मोल जान ले मीत।

किसी की प्रीत बसा मन में,
सुनें हम प्यार भरी सरगम।
समय यदि बदले तो बदले,
न बदले प्यार भरा मौसम।
प्रीत में जीवन जाये बीत।