दोहे - 1 / ऋता शेखर 'मधु'
प्रेम लिखो पाषाण पर, मन को कर लो नीर।
बह जाएगी पीर सब, देकर दिल को धीर॥1
मन दर्पण जब स्वच्छ हो, दिखते सुन्दर चित्र।
धब्बे कलुषित सोच के, धूमिल करें चरित्र॥2
मन के तरकश में भरे, बोली के लख बाण।
छूटें तो लौटें नहीं, ज्यों शरीर के प्राण॥3
अवसादों की आँधियाँ, दरकाती हैं भीत।
गठरी खोलो प्रीत की, जाए समय न बीत॥4
ज्ञान, दान, मुस्कान धन, दिल को रखे करीब।
भौतिक धन ज्यों-ज्यों बढ़े, होने लगे गरीब॥5
इधर उधर क्या ढूँढता, सब तेरे ही पास।
नारिकेल के बीच है, मीठी-मीठी आस॥6
शिखी शेर शतदल सभी, भारत की पहचान
प्राणों से प्यारा हमें, जन गन मन का गान। 7
अजब अजूबों से भरा, ब्रह्मा का संसार।
कोमल जिह्वा क्रोध में, उगल पड़े अंगार॥8
खिल कर महका मोगरा, घुली पवन में गंध।
अनुरागी बन अलि कली, बना रहे अनुबंध॥9
जाँच परख कर ध्यान से, मनुआ देना दान।
ताम्र पात्र में दुग्ध भी, होता ज़हर समान। 10