भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बहते जल के साथ न बह / जगदीश व्योम
Kavita Kosh से
बहते जल के साथ न बह
कोशिश करके मन की कह।
मौसम ने तेवर बदले
कुछ तो होगी खास बज़ह।
कुछ तो खतरे होंगे ही
चाहे जहाँ कहीं भी रह।
लोग तूझे कायर समझें
इतने अत्याचार न सह।
झूठ कपट मक्कारी का
चारण बनकर गजल न कह।
-डॉ॰ जगदीश व्योम