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बैठ्या सोचूं / रणवीर सिंह दहिया

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बैठ्या सोचूं खेत के डोलै ईब क्यूकर होवै गुजारा॥
ज्वार बाजरा आलू पिटग्या गिहूं धान भी म्हारा॥
1
खूब जतन कर खेत मनै उबड़ खाबड़ संवारे फेर
दस मणे तै बीस मणे हुये ज्वार बाजरे म्हारे फेर
खाद बीज की कीमतां नै जमा धरती कै मारे फेर
पूरे हरियाणा मैं लागे हरित क्रांति के नारे फेर
दस पन्दरा बरसां मैं इसका यो फुट्या लागै गुबारा॥
2
धनी किसान जो म्हारे गाम के फायदा खूब उठागे
उपर का धन खूब कमाया बालक नौकरी पागे
बिन साधन आले मरगे दुखां के बादल छागे
म्हारे नेता गाम मैं आकै म्हारी किस्मत माड़ी बतागे
सत्संग मैं जावण लागे जिब और ना चाल्या चारा॥
3
सत्संग मैं बढ़िया बात करैं गरीबी पै चुप रैहज्यां
सुरग नरक की बहसां मैं ये सींग कसूते फैहज्यां
मेरे बरगे रहवैं सोचते जमा बोल चुपाके सैहज्यां
जिनकी पांचों घी मैं वे घटिया बोल कई कैहज्यां
खेती क्यों तबाह होगी ना भेद खोल बतावैं सारा॥
4
गिहूं पड्या सड़ै गोदामां मैं रणबीर देख्या जान्ता ना
इसा हाल क्यों हुया इसका कारण समझ आन्ता ना
कहैं फूल फल उपज्याल्यो राह कोए मनै पान्ता ना
फल फूल कड़ै बिकैगा या बात कोण बतान्ता ना
टिकाउ खेती बचा सकै सै हो किलोई चाहे छारा॥