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खड़ा जो आदमी लगता है / नन्दी लाल

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खड़ा जो आदमी लगता है तुमको चार आने का।
पता मालूम उसको दाग, गालिब के ठिकाने का।

यूं उसके चीथड़े से पायजामे पर न जाओ तुम,
जो खुसरो ने उसे सौंपा है मुगलों के जमाने का।

यहां के ग़ज़लगो उसको कभी जीने नहीं देंगे,
बताता है नहीं सबको पता वह आशियाने का।

निकल जायें बराबर से कहीं दो सीढ़ियां ऊपर,
यहाँ पर हाल ऐसा ही हुआ, हर इक दीवाने का।

गजल पर तीसमारी कर रहे हैं लोग अब सारे,
करेंगे रोज उद्घाटन गजल के कारखाने का।

घुसे हम्माम में बैठे हैं वह ही बेहया यारांे,
सलीका आज तक आया नहीं जिनको नहाने का।

खुले मंचों से पढ़कर वाहवाही लूट लेते हैं,
चुराकर शेर पढ़ जाते किसी शायर पुराने का।