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प्रेम कभी-कभी / पुरूषोत्तम व्यास

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प्रेम कभी-कभी
उसी प्रकार आ जाता
जैसे

फूलों के पास तितली
ओह
कितना-कितना रस-रस
कितना कितना प्रेम-प्रेम