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राग-विराग - 1 / विमलेश शर्मा
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तुम्हारे संसार में
मैं?
और मेरे में तुम!
संसार भीतर संसार जैसी
एक निर्दोष चाहना है
और
इससे मुक्ति
जीवन-मुक्ति