भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पगडंडियाँ / विमलेश शर्मा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:56, 21 जून 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विमलेश शर्मा |अनुवादक= |संग्रह=ऋण...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोई पगडंडी
उभरती है स्वप्न में
जाग से उड़ती है धूल
पगडंडी मद्धम हो गुम जाती है
किसी टूटते तारे की छूटी हुई लकीर की तरह
बणजारा यादों के बीच
रेगिस्तान के पारावार बीच ख़ुद को पाती हूँ
आदिम धुन पर
रोमा जिप्सियों-सी नाचती हूँ
देर तक चलने के बाद
धोरों में धुँधले हो चुके समुद्र में
वज़ूद तलाशती हूँ
एक मध्यम स्वर उभरता है
धूल के गुबार के बीच कोई दूर गुनगुनाता है
चिह्ना सत्ता को जाता है
पगडंडियों का कोई इतिहास नहीं होता!