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अनुभव / सुदर्शन रत्नाकर

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ज्ञान की गंगा
बहने लगती है
जब अनुभव शब्द बन
पिघलने लगते हैं
मेरी हथेली से
मन के कोरे काग़ज़ पर
और बहने लगते हैं
शिराओं में रक्त बन।