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तुम्हारे बिन / सुदर्शन रत्नाकर

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सावन के बादल,
गरज रहे हैं, बरस रहें हैं,
तुम जो आ जाते।
सब सुंदर हो जाता।
मैं भी पहली बारिश की फुहारों में
नहा लेती,
मेरा अंतर्मन भी भीग जाता।
जानती हूँ, तुम्हें छू नहीं पाऊँगी
पर यह अहसास क्या कम होगा कि
तुम मेरे साथ हो,
तुम धरती पर आती बूँदों में हो,
तुम बारिश की लय में हो,
कल-कल करते पानी के संगीत में हो,
तुम सोंधी मिट्टी के कण-कण में हो।
प्रियतम,
तुम बिन क्या करूँ
बादल तो बरसेंगे, तन भी भीगेगा
भीगता मन मेरा, तुम जो आ जाते।
सावन के बादल
गरज रहे हैं, बरस रहे हैं।