भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लौह-सेब / वास्को पोपा / सोमदत्त
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:29, 23 जून 2021 का अवतरण
कहाँ है मेरी शान्ति
अभेद्य शान्ति ?
लौह-सेब
छिद गया है मेरी खोपड़ी में अपने डण्ठल सहित
मैं उसे चबाता हूँ
और चबा डालता हूँ मैं अपने ओंठ
अपनी शाखाओं से उसने मुझे अटकाया
मैं कोशिश करता हूँ उन्हें तोड़ने की
टूट जाती हैं मेरी अपनी उँगलियाँ
कहाँ है मेरी शान्ति
अखण्डनीय शान्ति ?
लौह-सेब ने
गहरे उतार दी हैं अपनी जड़ें
मेरी नरम चट्टान में
उखाड़ता हूँ मैं उनको
उखाड़ डालता हूँ मैं अपने नाख़ून
अपने क्रूर फल से वह मोटा करता है मुझे
मैं उसमें छेद करता हूँ
और छेद डालता हूँ अपना मस्तिष्क
कहाँ है मेरी शान्ति ?
लौह-सेब का अपना होने के लिए
पहले जंग खाओ, फिर फूलो शरद में
कहाँ है,
कहाँ है मेरी शान्ति ?
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सोमदत्त