भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़िंदा वही रहते हैं / पंछी जालौनवी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:13, 24 जून 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पंछी जालौनवी |अनुवादक= |संग्रह=दो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ज़िंदा रहना
जज़्बा है
मर्ज़ी है
या आदत है
ज़िंदा रहना
शौक़ है
इरादा है
या ज़रुरत है
ज़िंदा रहना
वो भी जीते जी
ज़िंदा रहना
ज़िद है
हठ है
या करामत है
ज़िंदा वह भी रहते हैं
जो जीते जी मर जाते हैं
ज़िंदा वह भी रहते हैं
जो मरे जा रहे हैं
ज़िंदा रहने के लिये
ज़िंदा रहना
मुसलसल एक मश्क़ है
ज़िंदा वही रहते हैं
जो समझते हैं
इस रियाज़त की तुग़यानी को
और ऐसे भी कुछ ज़िंदा हैं
जो आसान समझ लेते हैं
आसानी को॥