भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आवाज़ें / पंछी जालौनवी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:17, 24 जून 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पंछी जालौनवी |अनुवादक= |संग्रह=दो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
आवाज़ें
उन्हें शोर लगती हैं
फ़रयाद की
सिसकियों की
आहों की आवाज़ें
इसलिये दबा दी जाती हैं
शायद
अधिकार की
विचार की
लाचार की आवाज़ें
आवाज़ें
आवजों से टकरा कर
टूटती बिखरती हुई
अपनी किरचों को
समेट लेती हैं
ताकि फिर
एक ध्वनि सांस ले
ताकि फिर
एक आवाज़ बने
ताकि फिर
एक आवाज़ उठे
आवाज़ कभी दम नहीं तोड़ती
आवाज़ अमर होती है
आवाज़ कितनी भी दबाई जाये
आवाज़ उठती रहेगी॥