भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जियतो खाइब, मुअतो खाइब / विनय राय ‘बबुरंग’
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:47, 24 जून 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनय राय ‘बबुरंग’ |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जियतो खाइब, मुअतो खाइब
प्रभुजी! हमके बनइहs बाभन।
शंख बजाइबि बखरी बखरी, कांधे झुलाइबि गठरी
कुल्हि जाति के पतित बताइबि, अपना के कहबि पावन।
प्रभुजी! हमके बनइहऽ बाभन॥
धरम कराइबि, करम कराइबि अउरी दान कराइवि -
जीये खातिर नेम बताइबि, भले कहाइबि रावन। प्रभुजी !
हमके बनइह बाभन॥
नाहीं हमके भूख सताई, चाभब रोज मलाई
मंहगाई से जग झंउसाई, अपना के रही सावन।
प्रभुजी! हमके बनइहऽ बाभन॥
सूती-ऊठी करब दोहाई, जै जै जै जजमान गोसाई -
जियतो खाइबि, मुअतो खाइबि, पूड़ी क करबि ओसावन।
प्रभुजी! हमके बनइहऽ बाभन॥