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भूख / प्रभात
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मोर अपने छूटे हुए पंखों को फिर नहीं बीनता
प्रकृति में वे जहाँ छूटे हैं वहीं सबसे सुन्दर हैं
नदियाँ जहाँ हैं वहीं सबसे सुन्दर हैं
जंगल जहाँ हैं वहीं सबसे सुन्दर हैं
और उनमें विचरते बाघ, रीछ, हिरण
वहीं सबसे सुन्दर हैं
पेड़, पहाड़, सागर, आकाश
और उनमें विचरते प्राणी
कोई भी इस सौन्दर्य को
नष्ट नहीं करता
बल्कि घास तक इस सौन्दर्य को
बढ़ाती है पनीली रोशनी से
हरा टिड्डा तक जानता है
कैसे रसपान किया जाए सौन्दर्य का
गरुड़ तक जानता है
अपनी भूख की सीमा