भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पुतलों का मुल्क / उदय कामत
Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:26, 2 जुलाई 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उदय कामत |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatNazm}} <p...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पुतलों का मुल्क है पुतलों का मान है
बनना माज़ूर सब ने लिया ठान है
आँखें बे-नूर ख़ामोशी ही शान है
दिल है पत्थर का और जिस्म बे-जान है
मोम मिट्टी हजर सब का गुन-गान है
रंग सबके जुदा एक पहचान है
बुत का ही फ़ैसला बुत का फ़रमान है
बुत के फ़िरदौस में बुत ही रिज़वान है
बुत ही दरबान है बुत ही ख़ाक़ान है
बुत ही नादान है बुत ही इरफ़ान है
बुत ही शैतान है बुत ही यज़दान है
शोर चारों तरफ़ बुत ही इंसान है