दोहे-1 / तारकेश्वरी तरु 'सुधि'
कर देते बाधा खड़ी,जो राहों में नित्य।
उन लोगों के साथ का,क्या निकले औचित्य॥
अंदर से कुछ और हैं, बाहर से कुछ और |
किस पर करें यक़ीन अब, अजब आज का दौर॥ 
                                
जीवन यदि गतिशील हो,भर  देता उत्साह।
नदियों में मौजूद ज्यों, नाद,तरंग,प्रवाह॥
जो है अच्छा याद रख, बाक़ी बात बिसार।
छोटी - सी ये ज़िन्दगी, ऐसे इसे सँवार॥
आलस करता ज्ञान से,धन से सदा  विपन्न।
मेहनत ही करती सदा ,सभी काज़ संपन्न॥
एक बार जो खो गया , मिले न कर लो यत्न |
करो उचित उपयोग तुम , समय कीमती रत्न। 
क़द्र नही यदि  बात की,रहा कीजिए मौन।
वे ढपली-ढोलक लिए,तुझे सुनेगा कौन।
कमी मूर्खों को लगे ,कुछ हो कहीं स्वरूप।
ढूँढेंगे वो ऐब तब ,क्या बदली क्या धूप ॥
अश्व-गधे जिसके लिए, यदि  हो एक समान|
सिर्फ मूर्खों से मिले, उस राजा को मान।।
कर जाएँ मुस्कान सँग ,बच्चे बाधा पार।
अगर आपने दे दिया ,मित्र सबल आधार॥
चंचल मन को कब भला, मिलता है ठहराव। 
पल में जाकर नापता, अम्बर का फैलाव॥
जिनसे अक़्सर बैठकर, करते हम संवाद। 
उनसे होना लाज़मी, थोड़ा वाद-विवाद॥ 
दिल बैठा दिल थामकर, सुन क़दमों की चाप। 
ये नैना पगडंडियाँ, चुपके आये आप॥ 
दुनिया जंगल-जाल है, पग-पग मिलते शूल। 
कर लेता है पार जो, उसके हक़ में फूल॥
देख उसे नज़दीक़ से, सुधि मानव को तोल। 
लगते हमें सुहावने, सदा दूर के ढोल॥
	
	