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मन के नीड़ / श्रवण कुमार सेठ
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यहां-वहां बिखरे
थे तिनके,
चिड़िया ले आई
कुछ चुन के,
आपस में तिनकों
को बुन के
नीड़ बनाई अपने
मन के।