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जो उसे पसन्द नही / गुँजन श्रीवास्तव

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उसे कुछ शब्द, बस, पसन्द नही थे
रोक दिया करती थी वो
अचानक ही मुझे
सम्वादों के बीच !

हालाँकि कभी- कभार उनके मायने
नापसन्द करने लायक नही भी होते थे

फिर भी,
जो उसे पसन्द नही
वो भाषा में किस काम की ?

और जिसे वो सुनना नही चाहती
वो मेरी जुबां पे क्या कर रहा है?

ये मेरे लिए इक्कीसवीं सदी का
एक गम्भीर सवाल रहा है !