भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

असली हत्यारे / पराग पावन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:26, 24 अगस्त 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पराग पावन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavit...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

असली हत्यारे बन्दूक़ की असमर्थताओं को जानते हैं
वे पहचानते हैं तलवार की सीमाओं को
असली हत्यारे शब्दों से क़त्ल का काम लेते हैं

असली हत्यारे परिणाम में नहीं प्रक्रिया में शामिल हैं

वे मरघट के मुहाने पर सम्भोग के गीत बेच रहे हैं
भीषण बारिश के मौसम में
छतरियों को बदनाम कर रहे हैं
असली हत्यारे महफ़िल के केन्द्र में बैठे हुए
महफ़िल के केन्द्र को गाली दे रहे हैं
कि महफ़िल का केन्द्र सलामत रहे उनकी परम्परा के लिए

चाक़ू की निन्दा करने का काम
और कच्चे लोहे की दुकान खोलने का काम
वे समान भोली मुस्कान के साथ करते चले जा रहे हैं

असली हत्यारे आपकी बग़ल में खड़े होकर चाय पी रहे हैं
और चाय के ख़ून से महँगा होने की शिकायत कर रहे हैं

असली हत्यारों की उम्र हज़ार साल है
वे धर्मग्रन्थों की ओट में बैठे हैं
वे आत्मा नहीं आत्मा की परिभाषा हैं
हवा उन्हें सुखा नहीं सकती
आग जला नहीं सकती
पानी भिगो नहीं सकता

असली हत्यारे पुस्तकालय जाते हैं
संसद जाते हैं
दोस्त की दावत और टेलीविज़न से लौटते हैं
और सो जाते हैं
असली हत्यारे सोने से पहले याद दिलाना नहीं भूलते
कि सब कुछ अच्छा चल रहा है

असली हत्यारे बाँस बोते हैं
उस बाँस से सबसे उम्दा क़िस्म की लाठी
और सबसे निकृष्ट क़िस्म की बाँसुरी बनाते हैं

असली हत्यारों की शिनाख़्त करनी हो
तो उपसंहार तक कभी मत जाना
असली हत्यारे भूमिका में अपना काम कर चुके होते हैं ।