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प्रधानमन्त्री जी ! / पराग पावन

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प्रधानमन्त्री जी !
आप इन पथरियाए खुरदुरे तनों की व्याख्या
फूलों की दिशा से करने के लिए आज़ाद हैं
मुझे इनकी व्याख्या जड़ों की तरफ़ से करने की
इजाज़त दीजिए ।

इतिहास और प्रेमी
ज़रा वक़्त गुज़र जाने के बाद ही
अपना राज़ खोलते हैं
तब आपके फूलों की भी
कलई खुल जाएगी
और मेरे जड़ों की बदसूरती का रहस्य भी
दुनिया देखेगी ।

प्रधानमन्त्री जी !
शब्द और विचार भी क़ैदखाने होते हैं
आप चाहें तो हिटलर से पूछ सकते हैं ।

चाहे आप बकरियों से
बाघों के शाकाहारी होने की गवाही दिलवाइए
या भूख की गदोरी पर
फ़रेब का सबसे कसैला आँवला रखकर
अपनी पीठ ठोकिए

चाहे आप हत्याओं की सेज पर
सोई अपनी चुप्पी से
बुद्ध को मौन की तालीम दीजिए
या अपने वक्तव्यों की ऊँचाई से
आकाश को शर्मिन्दा कर दीजिए

पर एक यात्रा खेतों की भी कीजिए
खेतों में, कोइलारी में, ट्रैक्टर-ट्रॉलियों में
और ऐसी ही तमाम जगहों पर दफ़्न
उन चेहरों को देखिए
जो जीवनभर सच के भाले पर टँगे रहे
और आख़िर में ईमान के कुएँ में डूबकर मर गए

उन चेहरों को देखिए और यक़ीन करिए
कि चेहरे पर चमक लाने के तरीकों में
मशरूम की सब्ज़ी सबसे निकृष्टतम तरीका है ।