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अक्षरों में छिपे उल्लू / शलभ श्रीराम सिंह

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टूटे हुए गमले में
झूल रहा है कैक्टस !
नीचे — निश्चिन्त होकर
सो रहा है एक कुत्ता !

पाँवों में टोपियाँ पहने
अपने जन्मदिन की तैयारियाँ करता मैं —
पढ़ रहा हूँ
प्रेमिकाओं के पत्र !

अक्षरों में छिपे मादा उल्लू
उड़-उड़कर
बैठ रहे हैं मेरे सर और कन्धों पर !

इन्हीं में से कोई
अभी
गमला गिराएगा !
कुत्ता भूँकेगा
जन्मदिन मनाएगा !

टूटे हुए गमले में झूल रहा है कैक्टस !
उड़ रहे हैं अक्षरों में छिपे मादा उल्लू !

1966