भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रवायत / शिरीष कुमार मौर्य

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:45, 28 अगस्त 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिरीष कुमार मौर्य |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

मैं ऋतु का नाम नहीं लूँगा
एक दु:ख कहूँगा अपने शिवालिक का
मैं फूल का नाम नहीं लूँगा

एक रंग कहूँगा अपने शिवालिक का
मैं दृश्य के ब्यौरों में नहीं जाऊँगा
आप देखना कि मैं कहाँ जा पाया हूँ
कहाँ नहीं

हिमालय की छाँव में
शिवालिक होना मैं जानता हूँ
उस ऋतु में
जब धसकते ढलानों से

मिट्टी और पत्थर गिरते हैं मकानों पर
एक कवि चाहता था
कि शिवालिक की छाँव में कहीं
घर बना ले

उस घर पर
जब ऋतुओं का मलबा गिरे
तो कोई नेता
मुआवज़ा लेकर न आए
कविता में लिखे हिसाब
गुज़री ऋतुओं के
तो चक्र में कहीं कोई टीसता हुआ
वसंत न फँस जाए

किसी भाई को पुकारे कोई बहन
तो उसके स्वर की नदी
रेता बजरी के व्यापारियों से
बची रहे
भरी रहे जल से

चैत में हिमालय का हिम भर नहीं गलता
ससुराल में स्त्रियों का दिल भी जलता है
मेरे शिवालिक पर

दरअसल मुझे महीने का नाम भी नहीं लेना था
पर रवायत है रितुरैण की
चैत का नाम ले लेना चाहिए।