भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मौत सर पर मिरे खड़ी होगी / आकिब जावेद
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:13, 29 अगस्त 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आकिब जावेद |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGha...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मौत सर पर मिरे खड़ी होगी
ज़ीस्त से तब भी दोस्ती होगी।
इस वबा ने उजाड़ दी नस्लें
आदमी से खता भी बड़ी होगी।
दरमियाँने सफ़र यही सोचा
माँ मेरी दर पर ही खड़ी होगी।
भूलने वाले आरजू अपनी
भीड़ में तन्हा ढूँढती होगी।
मौत दुनियाँ को बांटता है जो
ज़िंदगी क्या उसे मिली होगी।
मौत का ख़ौफ़ है शहर में तिरे
ज़िंदगी भी डरी-डरी होगी।
सब्र को मेरे आज़माता है
मेरे दुश्मन ने कुछ तो पी होगी।
कैद में आदमी का ईमां है
उम्र कैसे गुज़र रही होगी।