भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

डर / गुलज़ार हुसैन

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:56, 29 अगस्त 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलज़ार हुसैन |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सच लिखने वाले लेखक को भी डर लगता है
लेकिन वह हत्यारों की धमकियों और बंदूक से नहीं डरता
वह किसी संगठन के कंधे पर बैठे नेताओं के खूनी अट्टहास से नहीं डरता
वह इंसान का खून पीने वाले सत्ता पोषित झुंड के षड्यंत्रों से नहीं डरता
वह आग लगाने वाले फायरब्रांड ढोंगियों से भी नहीं डरता
उसे डर लगता है कि अपने सीने में कायरों की गोली खाने के बाद वह चुप हो जाएगा
कि नई पीढ़ी से कल वह सब नहीं कह पाएगा, जो वह कहने के लिए आगे बढ़ रहा था
कि वह इस दुनिया को और बेहतर बनाने के लिए और कलम नहीं चला पाएगा
नई पीढ़ी को राह दिखाने के लिए मौजूद नहीं रह पाने का अफसोस ही
लेखक का डर है