पुकार / गुलज़ार हुसैन
चुनौतियों से भरे इस समय में
उबड़ -खाबड़ पथरीली राहों पर चलते हुए
जब कोई भी किसी को नहीं बुलाता
तब ऐसे में बुलाना चाहता हूँ मैं तुम्हें
हरी घास से भरी पगडंडी
विषधर सांप में बदल गई है अचानक
और उस पर चलने के अलावा
कोई चारा भी नहीं है
और उसके डंसने का डर भी है साथ-साथ
तब ऐसे समय में गुनगुनाना चाहता हूँ
कोई गीत तुम्हारे साथ
जब फूल -फल देने वाले पेड़ों
से गोले -बारूद निकालने के लिए
की जा रही हो सियासत
और इस सियासत से नजरें चुरा कर
तुम्हें फूल भेजना मानी जाए सबसे बड़ी कायरता
तब ऐसे समय में मैं गुलदस्ता लिए
करना चाहता हूँ तुम्हारा इंतज़ार
ऐसे खतरनाक समय में
जब जेब में चाकू रखना कोई अपराध नहीं हो
और लोग एक -दूसरे से डरते हुए रास्ते बदलते हों
जब हर तरफ माचिस की बिक्री बढ़ गई हो
और बस्तियों में आग लगने की आशंका
सबसे अधिक हो
तब ऐसे समय में तुम्हें एक बाल्टी पानी लेकर आने के लिए कहना चाहता हूँ
तुम्हीं कहो,
इस तरह मैंने पहले कब पुकारा है तुम्हें ?