हिंदीभाषा-राष्ट्र भाषा / रचना उनियाल
बंधु-बंधु को जोड़े हिंदी, जननी का वह अंश बनी।
प्रादुर्भावित देववाणी से, देवनागरी वंश बनी॥
रश्मिरथी की कनक रश्मियों,
से दिनकर नभ पर चमके।
हरिश्चंद्र के चंद्रप्रभा में,
हरियुग में भाषा खनके॥
शुक्ल पक्ष में राम सुशोभित, हिन्दी भी हरिवंश बनी।
बंधु-बंधु को जोड़े हिंदी, जननी का वह अंश बनी।
लेखन वाचन ज्ञापन है सम,
कोकिल कोयल बोल रही।
अलंकरण अनुनादित इसका,
वर्ण पुष्प को खोल रही॥
परंपरा भावों में महके, भाव सुलभ सारंश बनी।
बंधु-बंधु को जोड़े हिंदी, जननी का वह अंश बनी।
कन्या संगम या चिनाब तट,
तरनि नर्मदा ब्रह्मपुत्र ही।
रामानंदी रामानुज हो,
चैतन्य नरसी भगत ही॥
शंकरदेवो ज्ञानेश्वर की, धर्म ज्ञान मूलंश बनी।
बंधु-बंधु को जोड़े हिंदी, जननी का वह वंश बनी।
शासक शासन की युतियों से,
एक यज्ञ संकल्प करें।
चार दिशा कर गुंजित हिंदी,
राजनीति को अल्प करें॥
चले राष्ट्र भाषा के पथ में, अंग्रेज़ी ही दंश बनी।
बंधु-बंधु को जोड़े हिंदी, जननी का वह वंश बनी।
हिंदी वनिता हिन्दी दुहिता,
हिंदी में नारायण हैं।
राष्ट्र भक्त रक्त व्यक्त करना,
भाषा की रामायण है।
राष्ट्र कुंडली प्रश्न करे यह, क्यों हिन्दी नवमंश बनी।
बंधु-बंधु को जोड़े हिंदी, जननी का वह वंश बनी।