भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सीरतों में हम / रचना उनियाल

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:07, 31 अगस्त 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रचना उनियाल |अनुवादक= |संग्रह=अलं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रहें इंसान की इंसानियत की सीरतों में हम,
यही अपनी तमन्ना है रहेंगे दोस्तों में हम।

कभी मासूम आँखों दर्द को ग़र पढ़ लिया हमने,
मिटा कर दर्द को उसको रहेंगे बरकतों में हम।

कभी हो जाये ऐसा देख लें तुमको नज़र भर के,
रहेंगे तब तुम्हारी हसरतों की बरकतों में हम।

करेंगे रुखसती जब देख जी भर इस ज़माने को,
रहेंगे हम सदा औलाद की हर सूरतों में हम।

बनायेंगे जहाँ अपना लिखेंगे क़िस्मतें अपनी,
कहे ‘रचना’ चलेंगे ख़ुद बनाये रास्तों में हम।