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ए पी जे अब्दुल कलाम / रचना उनियाल

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प्रतिभा थी भरपूर, किया न कभी गुरुर,
रही लक्ष्मी दूर- दूर, भारती का लाल था।
जन्म भू धनुषकोड़ी, शिक्षा भी सम्पूर्ण जोड़ी,
पक्षी देखा सोचा थोड़ी, सुज्ञानी भूपाल था।
रोहिणी, पृथ्वी औ अग्नि, परमाणु विस्फोटाग्नि,
प्रक्षेपास्त्र जमदाग्नि, अब्दुल विशाल था।
सम दृष्टि सर्व कर्म, आहत न कोई मर्म,
निस्वार्थ सेवा ही धर्म, कलाम कमाल था।

बदलेंगे देश युवा, प्रयत्न सदैव महा,
विद्यार्थी रहा हूँ सदा, कहता वो भाल था।
जीवन अनेक रंग, प्रतिभा भी रही दंग,
राष्ट्रपति एक अंग, काल उषा काल था।
समय की कैसी गति, व्याख्यान में देह क्षति,
शिलोंग में हुई अति, कैसा अंतजाल था।
अनुकरणीय मन, गुणशीलता सघन,
भारत रत्न नमन, प्राण बेमिसाल था।