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नई उमंग / रचना उनियाल

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मानुष के प्राणों की धात्री, जीवन सुमन खिलाती है।
नई उमंग तरंगित हिय जब, नव उम्मीद जगाती है।।

बदली के घनघोर अँधेरे,
मूँदे जब मनु आशायें।
चार दिशायें बैरी बनकर,
रोक रहीं अभिलाषायें।।
तब कोई अनजाना राही,
बन दीपक की लौ आये।
हाथ बढ़ा तब दे सुझाव वह,
तम को दूर मिटा जाये।।
नन्ही- नन्ही आस किरण ही, नव उमंग बन जाती है।
नई उमंग तरंगित हिय जब, नव उम्मीद जगाती है।।

भाव उदधि के हर उफान पर,
भावों का पारावारा।
कोई तन हो कोई मन हो,
बच न सका कोई तारा।।
बंधन टूटें बाँधव छूटे,
घोर निराशा ही डोले।
दुख का सागर भरे हिलोरें,
अंतह में पीड़ा बो ले ।।
भरे वचन उम्मीद सुहानी, ही उमंग की थाती है।
नई उमंग तरंगित हिय जब, नव उम्मीद जगाती है।।
बीत गये जो पल हैं मनवा,
सुख-दुख के आले सारे।
जीव सफर का यात्री बनना,
पाना मंजिल क्यों हारे।।
उठना चलना पाना खोना,
ये प्राणों के हैं झूले।
नई उम्मीद उमंग तेरी,
हिय लम्हों से है फूले।।
मन का उपवन रहता पुष्पित, नई उमंग सजाती है।
नई उमंग तरंगित हिय जब, नव उम्मीद जगाती है।।