अवतारी साँवरा / रचना उनियाल
पावन किया यह मास पावस, ले धरा अवतार है।
लीला जगत को भी सिखायें, साँवरा करतार है।
चंदा चकोरी रैन लाई, घरघराते वारिधर।
पीड़ा सिसकती बेड़ियों में अनमना सा देह घर।।
जागी दिशायें ज्योति फैली, बाल शिशु का अवतरण।
चिंतित प्रलापित तात माता, क्या करेंगे संवरण।।
धर सूप बालक पार जमुना शेष की छैय्या मिली।
तब कौन जाना सत्य को यह, श्याम से गैय्या खिली।।
सुत देवकी के माँ यशोदा, गोप का संसार है।
लीला जगत को भी सिखायें, साँवरा करतार है
सुन बाँसुरी की धुन सलोनी, बावरी गोपी हुई।
तब डूब नागर प्रेम सागर, साँवरी गोपी हुई।।
सांदीपनी के मित्र को भी, नंद लाला मानते।
कर दूर उसके कष्ट को वह, मित्र माला जापते।।
नटखट सलोने से कन्हैया, गोद मैय्या झूलते।
विस्मृत करें हर रूप कान्हा, कुंज कुंजन फूलते।।
वह गोपियों के नेह आखर, लिख रहा अनुसार है।
लीला जगत को भी सिखायें, साँवरा करतार है।।
विष भाव भावों कालिया के, दंभ को तोड़ा करें।
मुख से निकाले दुर्वचन सौ, धैर्य तब छोड़ा करें।।
पापी सताता जब प्रजा को, पुण्य को हैं साधते।
रणछोड़ बन कर ब्रह्म रण में, धर्म को हैं तारते।।
मधु दैत्य मधुसूदन पराजित, कर किया जयघोष ही।
कुरुक्षेत्र में बन सारथी धर, धीर सा संतोष ही।।
दुर्जन अनाचारी बनें तो, देव उपसंहार हैं।
लीला जगत को भी सिखायें, साँवरा करतार है
मंदाकिनी मुख में विराजे, ज्ञान धात्री को दिखा।
मीरा जपे घनश्याम को तो, राधिका जी हैं सखा।।
भय भीति भाती पार्थ को जब, रख मही गांडीव को।
गोपाल देते रूप दर्शन, पात्र प्रिय राजीव को।।
तम यामिनी को त्याग मानुष, चंद्रिका हिय में जगा।
माधव मुरारी केशवा का, कर्म धागा उर लगा।।
देवाधिदेवा ज्ञान दायक, योगि पालनहार हैं।
लीला जगत को भी सिखायें, साँवरा करतार है।