भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
संवाद / संगीता शर्मा अधिकारी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:47, 1 सितम्बर 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संगीता शर्मा अधिकारी |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
आजकल नहीं बोलती ज़बान
नहीं सुनते कुछ कान
फिर भी दिन भर
बोलता रहता है मोबाइल
चलती रहती है उस पर
उंगलियां तेज रफ्तार
धारदार बेशुमार प्यार
और भी बहुत कुछ
हां, उसमे जज्ब हैं
बहुत सारे नंबर
दोस्तों-रिश्तेदारों
अपनो-गैरों के
लेकिन आजकल
बोलता बहुत है
नहीं बुलाता है, मोबाइल
आज
जगह ले ली है
संकोच ने अधिकार की
चुप्पी ने संवाद की।
सुनो
सुनो, यूं चुप न बैठो
फोन करो, बोलो, बतियाओ
करो झगड़ा, मन का गुबार हल्का
पर चुप्पी न साधो
दूरियां न बढ़ाओ।
सन्नाटे को तोड
घुटन के पहाड़ों के बीच से
संवाद का कोई पुल बनाओ
संवाद का कोई तो पुल बनाओ।