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परफेक्ट मां / संगीता शर्मा अधिकारी

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नहीं होना मुझे महिमामंडित
माँ ही तो हूँ मैं
नहीं बनना मुझे देवी
मुझे तो रहना है
सिर्फ
निडर-साहसी-तुम्हारी बेस्ट फ्रेंड-सी

मुझसे भी हो सकती है गलतियाँ
सब्जी में नमक ज्यादा
दूध का उबल कर
गैस पर गिर जाना
कपड़ों का हर बार
सफाई से न धुल पाना
किसी दिन बच्चों को न पढ़ाना
बच्चों की यूनिफार्म पर
प्रेस की क्रीज़ का
ढंग से न बैठ पाना।

क्यों मुझसे नहीं बन सकता
कभी खराब खाना?
क्यों मुझे ही चेक करने होते हैं
घर-भर के सभी पंखे बंद या खुले
क्यों दरवाजे पर ताला
मुझे ही लगाना है हर बार
क्यों बच्चों के फटे कपड़ों की
तुरपन करनी है मुझे ही
क्यों मुझे ही धोकर सुखाने
फिर लगाने हैं सभी कपड़े
घर-भर के हर बार

मुझे नहीं बनाना आज खाना
ऑर्डर करना है मुझे भी स्वीगी से
आज पांव पसार कर लेटे हुए
देखनी है अपनी पसंद वाली
सभी नई-पुरानी, लाजवाब-अनगिनत
फिल्में बैक-टू-बैक मुझे
मुझे भी बेधड़क सोना है बिस्तर पर
देर तक शाम ढले
सटा देना है गीला तोलिया
सोफे से तुम्हारी तरह।

खूब सजना-सवरना है आज
देर रात तेज आवाज़ में गाने लगा
करना है डांस बसंती
पहनने हैं कपड़े बिंदास
खुद की पसंद के...
 
दिखाना है ठेंगा खोखली मान्यताओं को
जीना है अब खुद की शर्तों पर
नहीं होना मुझे कई भुजाओं से संचालित
देवी स्वरूपा महिमामंडित परफेक्ट माँ
मुझे तो रहना है
सिर्फ
निडर-साहसी-तुम्हारी बेस्ट फ्रेंड-सी।