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कसीदा मुक्ति / यशोधरा रायचौधरी / लिपिका साहा

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गहरे लगाव में लौट रही हूँ, गहरे खिंचाव से दूर जाते-जाते
सिर्फ़ कसीदा किए जा रही हूँ मैं, मुक्तिरहित बेस्वाद-रिश्ते में
बड़ी-बड़ी कढ़ाई कर रही हूँ, सूई घूम रही है ऊपर-नीचे

सिलाई के धागे तक सुर्ख़, चरम कुटिल
रक्ताभा में लगे हैं मेरे सारे दु:ख, कंकिर
सिलाई का मुखड़ा भर गा उठता है बार-बार, फिर
सूई लौट रही है अपने गर्त में, विक्षोभसंकुल ....

सूई का गमनपथ, कूद के गिरना
देखकर तुम हो जाते हो दिशाहारा
मत देखो, मत देखो उसका फन लहराकर खड़ा होना
दिखता नहीं उस धागे का चले जाना, यथासाध्य दूरी बनाकर ?

मूल बांगला से अनुवाद : लिपिका साहा

लीजिए, अब यही कविता मूल बांगला में पढ़िए
                  সেলাই মুক্তি

তীব্র টানে ফিরে আসছি, তীব্র টানে দূরে যেতে যেতে
কেবলই সেলাই আমি করে যাচ্ছি, মুক্তিহীন সম্পর্কবিস্বাদে
বড় বড় ফোঁড় তুলছি, সূচ ঘুরছে ওপরে ও নীচে

সেলাইয়ের সুতোটুকু লালবর্ণ, চূড়ান্ত কুটিল
রক্তাভায় লেগে আছে আমার যাবৎ দুঃখ, ঢিল
সেলাইয়ের মুখড়াটুকু বার বার গেয়ে উঠে ফের
সূচ ফিরে যাচ্ছে তার নিজ গর্তে, বিক্ষোভসঙ্কুল...

সূচের গমনপথ, ঝাঁপ দিয়ে পড়া
দেখে তুমি হও দিশাহারা
দেখো না দেখো না তার ফণা তুলে উঠে দাঁড়ানোটি
দেখো না সুতোর সেই চলে যাওয়া যথাসাধ্য দূরত্ব অবধি।