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घाव / यशोधरा रायचौधरी / लिपिका साहा
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जितना दर्द खींच सको
उतना ही नीचे उतरो कुएँ में ।
जितनी नीचे उतरती जा रही है रस्सी
उतना ही दर्द निकाल रही है बालटी ।
उठना और गिरना और आख़िर तक जाना ....
यह क़लमकारी कह देगी घाव आज कितना है गहरा ।
मूल बांगला से अनुवाद : लिपिका साहा
लीजिए, अब यही कविता मूल बांगला में पढ़िए
ক্ষত
যতটা বেদনা তুলতে পার
তত নিচে যাবে কুয়োটির
যত নিচে চলে যাচ্ছে দড়ি
বালতি তত বেদনা তুলেছে
ওঠা আর পড়া আর শেষ অব্দি যাওয়া...
এই লেখা বলে দেবে ক্ষত আজ কতটা গভীর