फाइनल ईयर की लड़कियाँ / मृदुला सिंह
मुस्कुराती हैं
खिलखिलाती हैं
स्कूटी के शीशे में
खुद को संवारती
कॉलेज बिल्डिंग के साथ
सेल्फी लेतीं है
फाइनल ईयर की लड़कियां
ग्राउंड स्टाफ से सीखती हैं
जीवन का पाठ
विषमताओं से जूझने की कला
उनके मन के सपने
नीली चिड़िया के साथ
उड़ जाते हैं दूर आसमान में
भूगोल के पन्ने पलटते
कर लेती हैं यात्राएं असंभव की
सेमिनार और असाइंमेंट में उलझती
कविता की लय में
तिनके सी बहती
वर दे, वीणावादिनी वर दे
की तान में
सबसे प्यारा हिंदुस्तान की
लय के साथ
रस विभोर हो जाती
जी लेती है क्षणों को
निबंध और पोस्टर लेखन मे
नारी जीवन का मर्म अंकित करती
ये फाइनल ईयर की लड़कियां
अंतिम साल को जी लेने की
कामना से भरी
विदा के मार्मिक क्षणो में मांगती हैं
बिन बोले आशीष गुरुओं का
वे
खुश रहो! के मौन शब्द
पढ़ लेती हैं और मुस्कुरा देती हैं
नीले पीले दुपट्टों वाली
गाढ़े सपनो वाली
तीन सालों की पढ़ाई के बाद
जाने कहाँ चली जाती हैं
फाइनल ईयर की लड़कियाँ