भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खिली चाँदनी / हरदीप कौर सन्धु

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:30, 27 सितम्बर 2021 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
31
गोद में नन्ही
माँ के आँचल में ज्यों
खिली चाँदनी
 32
बात जाने वो
चेहरा यूँ पढ़कर
अंतर्यामी माँ
33
तू दूर भला,
थामे हुए मुझको
माँ तेरी बाहें
34
विदा की घड़ी
कूँज बिछुड़ गई
आज डार से
35
माँ की कढ़ाई
चादर को बिछाऊँ
माँ स्पर्श पाऊँ
36
लाडो बिटिया
होती माँ का ही अंश
चलाए वंश
36
विदा की घड़ी
द्वार भी घबराए
बिटिया चली
38
कब है सोना
एक माँ ही समझे
शिशु का रोना
39
 कैसे जिओगे?
 जब जीवन से हो
 प्यार लापता
40
 ये जीवन है
 सुख और दुःख का
 जमा -‍निकासी