ये है मेरी चिड़िया / हरदीप कौर सन्धु
बचपन में
नन्हीं नन्हीं- सी बातें
चुन्नू -मुन्नू की
करें टोकरी टेढ़ी
छड़ी- सहारे
बाँधा लम्बी रस्सी से
टोकरी नीचे
रखें रोटी का चूरा
थोड़ा- सा पानी
मुट्ठी भर दाने भी
किसी कोने में
चुपके से छुपते
‘शोर न करो’
साथियों से कहते
उड़ते पाखी
ज्यों देखकर रोटी
दाना व पानी
बिन टोकरी देखे
ज्यों पास आते
अपनी समझ में
फुर्ती दिखाते
हम रस्सी खींचते
गिरी टोकरी
फुर्र उड़ते पाखी
चिड़िया फुर्र
कबूतर भी फुर्र
फुर्र ऱ र र
पक्षी फु्र्र हो जाते
हाथ मलते
यूँ हम रह जाते
मगर फिर
बिन साहस हारे
रखते वहीं
दोस्तों के सहारे
फिर टोकरी
ऐसे कभी- न- कभी
कोई- न- कोई
कबूतर - चिड़िया
पकड़ी जाती
पंख-पंख को कर
हरा गुलाबी
आज़ाद छोड़ देते
खुले आकाश
लगाकर अपनी
नाम परची
ये है मेरी चिड़िया
वो तेरा कबूतर !