कोई दर्द पास से गुज़रा / प्रमिला वर्मा
शुरुआत यों हुई
कोई दर्द पास से हवा-सा गुज़रा।
यादों के पन्ने पलटे
और तीखी तेज हवा में
तुम्हारे धुंधले से अक्स को
अपनी गीली आंखों में
शीशे-सा देख
सहम गई मैं।
तुमने मुझसे कहा था-
तुम मेरी प्रेयसी हो, मेरी सखी हो।
जिसे मैं पुकारता रहा बरसों से।
तुमने मुझे दिखाए थे वे पीले पन्ने
जिस पर सचमुच लिखा था मेरा नाम।
मेरी पहाड़ की धीरज, मेरी प्रेयसी।
तुमने कहा था देखो
इस घने पेड़ की शाखों पर बैठी
चिड़ियों से
पूछो
मैंने तुम्हें कितना पुकारा है।
मैं अभिभूत थी।
तुमने मेरा हाथ पकड़ कर,
घर के हर कोने में घुमाया था।
देखो प्रिये,
इस घर का हर कोना अंतरा तुम्हारा है।
मैं हुलसकर, बिलसकर
उस कोने अंतरे को भाग-भाग कर
छूती रही
तुम मुझे देखते रहते।
मैं बरसों उसी कोने अंतरे के भुलावे
में
तुम तक पहुँचती रही।
फिर एक दिन सहसा
तुम्हारे छद्म व्यक्तित्व को देखा मैंने।
मैं तुम्हारे आने के इंतजार में,
छत पर टहलती रहती।
देखती दूर कच्ची पगडंडियों से,
चरवाहे गुज़रते
जिनके भेड़ों के झुंड में,
गले में बंधी घंटियाँ बजतीं।
मैं आंखें मूंद लेती।
आंखों में होता डूबता सूरज का
सुनहलापन
शाम घिर आती
मेरे कानों में गूंजती रहतीं
घंटियों की आवाज।
मैं नहीं जानती थी
मेरे सुखों की भी सीमा रेखा है।
कि
सहसा एक दिन
तुम एक अन्य स्त्री को लिए खड़े थे
कहा मुझसे
अब यह छूएगी
मेरे घर का कोना अंतरा।
तुमने यह भी कहा था
कि,
अंधेरी लंबी सुरंग में,
वह तुम्हारे साथ होगी
ताकि तुम्हें डर ना लगे।
वह तुम्हारा हाथ पकड़े रहेगी
जहाँ से कभी तुम गुजरे थे मेरे साथ।
मैं उन कोने अंतरे की याद में
सोचती रही... उन चिड़ियों से पूछती रही
यह कैसा देय था?
मुझे नहीं तलाशने नए कोने अंतरे
मैं उन्हीं कोने अंतरे की याद में
अपना जीवन बिताउंगी।
मुझे नहीं मालूम
जाना कहाँ है मुझे
लेकिन उस दिन मैं चल पड़ी थी
कुछ बातें कहने, कुछ बातें सुनने।
लेकिन तुम पकड़े थे उस स्त्री का हाथ
मुझ पर उचटती निगाह डाल,
उन आंखों में था अजनबीपन
मानो तुम मुझे पहचानते ही ना हो।
और चल दिए थे तुम किसी गंतव्य की ओर।
मैं ठगी-सी खड़ी रह गई।
मैंने क्षितिज की ओर देखा
फिर खेतों के पार
काले धुंधले, पहाड़ों के बीच देखा
कई कच्चे घरों में जल रही थी
धुँधली-सी रोशनी।
बताओ तो
बोलो
क्या मैं सचमुच तुम्हें भुला पाऊंगी?
इस रोशनी का मेरी जिंदगी में क्या काम?
नहीं छूने है मुझे कोने अंतरे।
कोई दर्द पास से हवा-सा गुज़रा
मैंने अपनी गीली आंखों को
रगड़ कर पोछ डाला।
मैं सचमुच तुम्हें भुला न पाऊंगी।