Last modified on 4 अक्टूबर 2021, at 22:58

श्रम का स्वाद / गोलेन्द्र पटेल

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:58, 4 अक्टूबर 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोलेन्द्र पटेल |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

गाँव से शहर के गोदाम में गेहूँ?
गरीबों के पक्ष में बोलने वाला गेहूँ
एक दिन गोदाम से कहा
ऐसा क्यों होता है
कि अक्सर अकेले में अनाज
सम्पन्न से पूछता है
जो तुम खा रहे हो
क्या तुम्हें पता है
कि वह किस जमीन की उपज है
उसमें किसके श्रम का स्वाद है
इतनी ख़ुशबू कहाँ से आई?
तुम हो कि
ठूँसे जा रहे हो रोटी
निःशब्द!