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अहसास / अमृता सिन्हा
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क़तरे हुए पंख उसके
फिर उग आए हैं
अपनी चोंच की धार भी
करती जा रही है लगातार
तेज़ और तेज़
अब कोई जाल
कोई पिंजरा
उसे क़ैद नहीं कर पाएगा
बहेलिया भी ठगा-सा रह जाएगा
क्योंकि
चिड़िया ने
चख लिया है स्वाद
आज़ादी का।