भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अहसास / अमृता सिन्हा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:50, 5 अक्टूबर 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमृता सिन्हा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क़तरे हुए पंख उसके
फिर उग आए हैं

अपनी चोंच की धार भी
करती जा रही है लगातार
तेज़ और तेज़

अब कोई जाल
कोई पिंजरा
उसे क़ैद नहीं कर पाएगा
बहेलिया भी ठगा-सा रह जाएगा

क्योंकि
चिड़िया ने
चख लिया है स्वाद
आज़ादी का।