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फ़्रांस / अदिति वसुराय / अनिल जनविजय

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अपने शराब के रंग के बालों वाले सिर पर
पूरे फ्रांसीसी देश को छुपाना

मैं पार्कस्ट्रीट से फ़ोन कर रही हूँ
उँगलियों में सिगरेट जल रही है
समुद्र तट पर फिर से मिलने के लिए —
हम समय बताते हैं एक-दूसरे को ।

उसकी हलकी जींस में इस ठण्ड का राज़ छुपा है
अब चमकदार पत्थर की वह पुरानी कहानी भूल जाओ
अब एलबम में भी हम पहचान नहीं पाते
उसकी वह जींस, उसकी चमकीली जींस —
मुझे नारंगी मेपल के पत्तों की बीच दिखाई दे रही है !


पेरिस में सड़क के किनारे कैफे में
उसकी बेतरतीब टी-शर्ट में
सूरजमुखी के पंख से
फैलते हैं।

मैं कॉफी और थोड़ी शराब पीकर ही लड़खड़ा गई हूँ —
पर फ्रांस ने मुझे छुपा लिया
और तुरन्त मेरा स्टीयरिंग व्हील पकड़ लिया
विण्ड स्क्रीन पर चाँद-तारों को खींचना
मेरी एक पोषित इच्छा है।

पार्क स्ट्रीट नहीं जानती,
फ्रांस भूल गया है
लेकिन मेरा पासपोर्ट अभी भी है
महामहिम ने मुझे वीज़ा दे दिया है

फ्रांस नहीं जानता,
पार्क स्ट्रीट भूल गई है
यह वही भिखारी है जो
रास्ते में आकर हाथ फैलाता है

वे सभी आकाशगंगाएँ
उसके चीथड़ों में आती-जाती रहती हैं
समय के संचय का दौर बहुत लम्बा है।

उसने लम्बे समय से इसे नहीं देखा था
आज शराब के रंग का दिन है,
शान्त रक्तपात की तरह मुग्ध है फ्रांस

उसने मुझे एक उपहार दिया
मैं उदासीन पतंग उड़ाने से नहीं बच सकी
वह यूरोप का एक टुकड़ा-भर है
भिखारी यह बात भूल गया है,
और फ्रांस जैसे अभी भी यह बात नहीं जानता है।

मूल बांगला से अनुवाद : अनिल जनविजय