वर्षों तक किसी ने बाग़ीचे की सार-सम्भाल नहीं की थी । तब भी
इस साल मई में, जून में, वह ख़ूब खिल गया था, इस बार अपने आप
रेलिंग तक एक मुसलसल चमक, एक हज़ार गुलाब
कार्नेशन, जिरेनियम, स्वीटपी —
बैंजनी, नारंगी, हरे, लाल, पीले रंग
रंगों की कलगियाँ — इतनी ज़्यादा कि पानी की पुरानी झारी वाली
औरत
पौधों को पानी देने के लिए फिर से प्रकट हो गई —
पहले जैसी ही सुन्दर, शान्त, एक अव्याख्येय आश्वासन से भरपूर ।
और बाग़ीचा
उसके चारों ओर इकट्ठा हो गया, कन्धे से ऊँचा,
उसने उसे गले लगा लिया, पूरी तरह अपने अंक में भर लिया,
उसे अपनी बाँहों में उठा लिया । तब दिन की रोशनी में हमने देखा,
किस तरह वह पूरा बाग़ीचा और पानी की झारी के साथ वह औरत
ऊपर से उतरी — और जब
हमने आसमान की ओर देखा तो उसकी झारी से पानी की कुछ बून्दें
आहिस्ता से गिर पड़ीं हमारे गालों, ठुड्डियों और होंठों पर ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मंगलेश डबराल