भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ग़ालिब को सुनते हुए / शरद बिलौरे

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:50, 20 अक्टूबर 2021 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चचा ग़ालिब के नाम

आपने मेरे सलाम का
जवाब नहीं दिया
चचा ग़ालिब
आप इतने उदास क्यूँ हैं
एक बात बताइये
आपको मौत से डर नहीं लगता
देखिये
यूँ हँस देने से काम नहीं चलेगा।

बुरा मत मानना
जितनी देर आप अपनी ग़ज़ल के
एक-एक शेर को गुनगुनाते रहे हैं
उतनी देर
यदि आप अपना पाजामा ही धोते
तो शायद
ऎसी उदास ग़ज़लें
लिखने की नौबत ही नहीं आती
वैसे आप तो बड़े शायर हैं
भला बताइये
इस समय
जब मैं
आपको प्रेम करने के गुर
बताने के मूड में हूँ

आपकी इन ग़ज़लों का क्या करूँ?