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कविता / अर्पिता राठौर

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मुझे कविता नहीं आती
वह तो बस कई दफ़े
रोटी सेंकते
नज़र अटक जाती है
दहकते तवे की ओर
और हाथ
छू जाता है उससे

तब उफन पड़ती है
कविता।