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मधुमय संवाद / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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1
कुछ न माँगा
माँगी उसकी खुशी
मुट्ठीभर धूप सी
अँधेरे मिले
टूटे इन्द्रधनुष
राहुग्रस्त चन्द्रमा।
2
स्वप्न गहन
अंक में था चन्द्रमा
आँसू गीले नयन
भीगे कपोल
स्वप्न क्या टूट गया
प्रिय ही रूठ गया।
3
बज्र शिलाएँ
चढ़ाई भी नुकीली
बरसें अग्निमेघ
गिरे तो अंत
चढ़ें तो अंगदाह
प्रारब्ध में था लिखा।
4
मन है एक
दुख सब अलग
बाँटें न बँटे कभी
घायल पाँव
चूर चूर सपने
चुभते काँच बन।
5
पत्थर पूजे
सिर भी टकराया
हाथ कुछ न आया
प्रतिदान में
घायल हुआ माथा
यही अपनी गाथा।
6
तप्त भाल पे
जड़ दू मैं चुम्बन
तन- मन शीतल,
झंकृत तार
हृदय का सितार
मिटें ताप -संताप
7
अरसे बाद
हुईं नेह बौछार
घुला था अवसाद
कानों में पड़ा
मधुमय संवाद
ज्यों कोई मन्त्रोच्चार।
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